Panchmukhi Tirth Yatra Chhattisgarh
CHAR DHAM YATRA
1.)श्री केदारनाथ, 2.)श्री बद्रीनाथ, 3.)श्री हरिद्वार, 4.)श्री यमुनोत्री, 5.)श्री गंगोत्री, 6.)श्री ऋषिकेश
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श्री केदारनाथ - ऐसी मान्यता है कि द्वापर काल में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीत लिया था. तब उन्हें इस बात की ग्लानि हो रही थी कि उन्होंने अपने भाइयों, सगे-संबंधियों का वध किया है. उन्होंने बहुत पाप किया है इसे लेकर वो बहुत दुखी रहा करते थे. इन पापों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भगवान शिव के दर्शन के लिए काशी पहुंचे. लेकिन इस बात का पता जब भोलेनाथ को चला तो वो नाराज होकर केदारनाथ चले गए. फिर पांडव भी भोलेनाथ के पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए. फिर भगवान शिव ने पांडवों से बचने के लिए बैल का रूप धारण कर बैल की झुंड में शामिल हो गए. तब भीम ने अपना विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गये. सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए, परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली. पांडवों की इस लालसा को देखकर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए. इसके बाद पांडव इस पाप से मुक्त हुए . इसके बाद पांडवों यहां पर केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया था. जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजा की जाती है.
श्री बद्रीनाथ - विष्णु पुराण में इस क्षेत्र से संबंधित एक अन्य कथा है, जिसके अनुसार धर्म के दो पुत्र हुए- नर तथा नारायण, जिन्होंने धर्म के विस्तार हेतु कई वर्षों तक इस स्थान पर तपस्या की थी। अपना आश्रम स्थापित करने के लिए एक आदर्श स्थान की तलाश में वे वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों में घूमे। अंततः उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी का चश्मा मिला, जिसके पास के क्षेत्र को उन्होंने बद्री विशाल नाम दिया।[4] यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत इसी जगह पर लिखी थी,[9] और नर-नारायण ने ही क्रमशः अगले जन्म में क्रमशः अर्जुन तथा कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।[10] महाभारतकालीन एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं।
श्री हरिद्वार, - हरिद्वार में त्रिदेव वास करते हैं, लेकिन मोक्ष की इस नगरी में ही एक शक्तिपीठ भी है जो सती के त्याग का गवाह है. यह शक्तिपीठ सती के शिव के प्रति प्रेम का भी गवाह है. हरिद्वार का माया देवी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां सती की नाभि गिरी थी. देवनगरी हरिद्वार में पतित पावनी गंगा भक्तों के पाप धोती है.
श्री यमुनोत्री - एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनि का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से251किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से131किलोमीटरपश्चिम -उत्तर में 3185मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से5मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है।यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए
श्री गंगोत्री - पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी। इस पवित्र शिलाखंड के निकट ही 18 वी शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसी मान्यता है कि देवी भागीरथी ने इसी स्थान पर धरती का स्पर्श किया। ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नहीं रहते। शिवलिंग के रूप में एक नैसर्गिक चट्टान भागीरथी नदी में जलमग्न है। यह दृश्य अत्यधिक मनोहार एवं आकर्षक है। इसके देखने से दैवी शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। पौराणिक आख्यानो के अनुसार, भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओ को फैला कर बैठ गए और उन्होने गंगा माता को अपनी घुंघराली जटाओ में लपेट दिया। शीतकाल के आरंभ में जब गंगा का स्तर काफी अधिक नीचे चला जाता है तब उस अवसर पर ही उक्त पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते है।
श्री ऋषिकेश - हिमालय का प्रवेश द्वार,ऋषिकेश जहाँ पहुँचकर गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शान्त वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं।
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