Panchmukhi Tirth Yatra Chhattisgarh
GANGA SAGAR YATRA
1)जगरनाथ पूरी, 2)गंगा सागर, 3)मां कामाख्या देवी मंदिर, 4)कोलकाता , 5)दक्षिणेश्वर काली घाट, 5)काली मंदिर, 6)भुनेश्वर, 7)कोणार्क मंदिर, 8)लिंगराज, साइड सीन - वेल्लूर मठ, विक्टोरिया मेमोरियल, चंद्रभागा, धौलीगिरी, केदारगौरी, मुक्तेश्वर, सिद्धेश्वर
OVERVIEW
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KEY FEATURES
गंगा सागर: - जब माता गंगा भगवान शिव की जटा से निकलकर पृथ्वी पर पहुंची थीं तब वह भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई थीं। मां गंगा के पावन जल से राजा सागर के साठ हजार शापग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था। इस घटना की याद में तीर्थ गंगा सागर का नाम प्रसिद्ध हुआ।. 2) गंगासागर के समीप कपिल मुनि आश्रम बनाकर तपस्या करते थे। कपिल मुनि के भगवान विष्णु का अंश भी माना जाता है। कपिल मुनि के समय राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ किया और इंद्र देव ने एक अश्व को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। अश्वमेघ यज्ञ का अश्व चोरी हो जाने पर राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को उसकी खोज में लगा दिया। वे सभी खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुंचे और मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया। राजा सगर ने मुनि से पुत्रों के लिए क्षमा मांगी। कपिल मुनि ने कहा कि सभी पुत्रों को मोक्ष के लिए अब बस एक ही मार्ग बचा है, तुम स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लेकर आओ। राजा सगर के पोते राजकुमार अंशुमान ने प्रण लिया कि जब तक मां गंगा पृथ्वी पर नहीं आ जाती, तब तक इस वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं बैठेगा। राजकुमार अंशुमान राजा बन गए और फिर उसके बाद राजा भागीरथ आए। राजा भागीरथ की तपस्या मां गंगा प्रसन्न हुईं और मकर संक्रांति के दिन पृथ्वी लोक पर आईं और कपिल मुनि के आश्रम पहुंचीं।
जगन्नाथ पुरी - पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।
कामाख्या देवी - पूर्वकाल के इतिहास के अनुसार भगवान विष्णु ने माता सती के अपने चक्र से 51 भाग किए थे, क्युकी वह भगवान शिव का मोह मां सती के प्रति भंग करना चाहते थे। तब उनके 51 भाग जहा-जहा गिरे वह सब 51 शक्तिपीठों के नाम से जाने गए। और उस 51 भागो में से माता की योनि इस कामाख्या में गिरी थी। इसीलिए यह माता की योनि की पूजा भी की जाति है।
कोलकाता शक्तिपीठ - पौराणिक कथाओं के अनुसार कोलकाता के कालीघाट मंदिर में माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था तब से ही इसे शक्तिपीठ कहा जाने लगा. गौरतलब है कि शक्तिपीठ वे स्थान हैं जहां माता सती की मृत देह के अंग गिरे थे. ये पवित्र स्थान भारत ही नहीं बांग्लादेश व नेपाल में भी स्थित हैं.
कोणार्क मंदिर - साम्ब ने चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की। जिसके चलते सूर्य देव प्रसन्न हो गए। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया। तभी साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मंदिर बनवाने का निर्णय किया।
भुवनेश्वर,लिंगराज - भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर का विशेष महत्व है। इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ विष्णु की भी पूजा की जाती है। लिंगराज मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि भुवनेश्वर नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है। दरअसल भगवान शिव की पत्नी को यहां भुवनेश्वरी कहा जाता है। वहीं लिंगराज का अर्थ होता हो, लिंगम के राजा, जो यहां भगवान शिव को कहा जाता है। पहले इस मंदिर में शिव की पूजा कीर्तिवास के रूप में की जाती थी, फिर बाद में हरिहर के रूप में की जाने लगी। मंदिर का निर्माण कलिंग और उड़िया शैली में किया गया है। इसे बनाने के लिए बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है। ख़ास बात है कि इस मंदिर के ऊपरी भाग पर उल्टी घंटी और कलश को स्थापित किया गया है, जो लोगों को काफ़ी आश्चर्यजनक लगता है। वहीं इसके शीर्ष हिस्से को पिरामिड के आकार में रखा गया है। अन्य हिंदू मंदिर की तुलना में लिंगराज कुछ कठोर परंपराओं का पालन करता है।
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